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Badrinath Aushadhi
आयुर्वेद की कथा
रामायण, महाभारत और अनेक पुराणों में समुद्रमंथन की कथा आती है। रामायण व महाभारत के अनुसार, समुद्रमंथन में जो 14 रत्न निकले, उसमें चौदहवें रत्न के रूप में अमृत का कुंभ लिए भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव हुआ। जब अनेक रोगों से जूझने में संसार असमर्थ था, उस समय भगवान धन्वंतरि अमृत कुम्भ को लेकर समुद्र से निकले।
चतुर्भुज भगवान धन्वंतरि ऊपर के दोनों हाथों में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं, तथा दो अन्य हाथों में जलूका तथा अमृत कुम्भ धारण किये है। ये चारों पदार्थ चिकित्सा के चार पाद के लिए संकेत स्वरूप है। वैद्य, परिचारक, औषध और रोगी – चिकित्सा के इन चार पादों का सांकेतिक रूप में प्रतिनिधित्व करते हुये, भगवान धन्वंतरि समुद्रमंथन के समय उत्पन्न हुये।
आयुर्वेद के अनुसार
हमारा शरीर पांच तत्वों (जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु) से मिलकर बना है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर का स्वास्थ्य इन तीन चीजों पर सबसे ज्यादा निर्भर करता है : वात पित्त और कफ। ये तीनों अगर शरीर में संतुलित अवस्था में हैं तो आप स्वस्थ हैं, अगर इनमें से किसी का भी संतुलन बिगड़ा तो रोग उत्पन्न होने लगते हैं. इसी वजह से इन्हें ‘दोष’ कहा गया है। इन दोषों की संख्या तीन होने के कारण ही इन्हें त्रिदोष कहा गया है।
वात पित्त और कफ को त्रिदोष कहते हैं। … आयुर्वेद के अनुसार कफ दोष में 28 रोग, पित्त रोग में 40 रोग और वात दोष में 80 प्रकार के रोग होते हैं।